कल जीवन ने
मुझसे मेरे सपने माँगे
मैं क्या करता दे दिए उसे
बदले में साँस-साँस की जलन दे गया वह।
हर किरण सबेरा लिए
क्षितिज तक आती है
पर्वत झरनों, नदियों पर
प्यार लुटाती है
मैं जब तक सोचूँ
उससे आँखें चार करूँ
वह निमिष मात्र में
दिव्य लोक उड़ जाती है
सूरज को मैंने
अपनी व्यथा सुनाई तो
‘कल बात करूँगा’ ऐसा वचन दे गया वह।
चंद्रमा मिला
उससे भी मन की व्यथा कही
सारे तारों के सम्मुख
दुख की कथा कही
ये देव लोक के प्रतिनिधि
हैं निष्करुण सभी
यह जाना तो समझा
पीड़ा अन्यथा कही
सीधे उत्तर माँगा
जब जगत-नियंता से
उत्तर ‘जगती का है यह चलन’ दे गया वह।